नारनौल के इतिहास और नामकरण को लेकर कोई प्रमाणीक तथ्य नही मिलते, इसलिए विद्वान एकमत नही है, लेकिन यह एक एतहासिक नगर है, इस बात से सभी इतफाक रखते है| इसकी स्थापना और नामकरण को लेकर अनेक किवदंतयां और गाथाएं प्रचलित है|
यहाँ के प्राचीन सूर्नायरायण मंदिर मे मिले एक शिलालेख मे इसका नामोलेख नंदिग्राम् के रुप मे किया गया है| भागवत पुराण मे भी नंदिग्राम् का जिक्र है| इसलिए इस नगर को द्वापर कालिन कहा जाता है| पौराणीक गाथाओं के अनुसार नारनौल नगर महाभारत काल नरराश्ट्र् के रुप मे जाना जाता था| यह भी प्रचलित है कि यह इलाका पहले भारजंगल से ढका हुआ था और शेरो का ठिकाना था| जंगल साफ़ करके यहाँ नगर बसाया गया इसलिए इसका नाम नाहर नौल रखा गया जो कालांतर मे नारनौल हो गया|
एक मान्यता यह भी है कि करीब एक हजार वषपूर्व दिल्ली के शासक अनंगपाल तंवर के रिस्तेदार राजा नूनकरण ने इस नगर को आबाद किया| राजा नूनकरण के समय नारनौल एक व्यापारिक केन्द्र् के रुप मे जाना जाता था| मुग़ल बादशाह बाबर ने अपनी पुस्तक 'तुजके बाबरी' मे यहाँ कपास मंडी होने का उल्लेख किया है| जिससे यह जाहिर होता है कि यहाँ कपास कि खेती होती थी| बाबर ने यहाँ के बाजारो का चर्चा गुदड़ी के नाम से किया है|
बारहवीं शताब्दि के पहले दो दशक तक यहाँ राजपूतो का शासन रहा| 12वीं शताब्दि के तीसरे दशक मे मुस्लिम संत हजरत तुर्कमान यहाँ आया और उसके साथ ही मुसलमानो का यहाँ प्रभाव बढ़ने लगा| आखिर नारनौल मुस्लिम के आधिपत्य मे आ गया| पंद्र्हवीं शताब्दि के नारनौल मुगलो के हाथो से निकल कर सूर अफगानो के नियंत्रण मे आ गया| सबसे पहले शेरशाह सूरी के दादा इब्राहिम खान यहाँ आये| उन्हे फिरोज़-ए-हिसार के शासक ने नारनौल और इसके आसपास का क्षेत्र दिया था| इब्राहिम सूर का मकबरा आज भी नारनौल मे मौजूद है और नारनौल के सभी स्मारको से बेहतर स्थिति मे है| इब्राहिम सूर की मौत के बाद उसका बेटा और शेरशाह सूर का पिता हसनखान नारनौल का जागीरदार बना| इतिहासकार वी.स्मिथ के अनुसार शेरशाह का जन्म भी नारनौल मे हुआ था|
पानीपत कि दूसरी लड़ाई के बाद यह इलाका अकबर के नियंत्रण मे था और उसने सम्राट हेमू को गिरफ्तार करने के इनाम के तौर पर इसे शाह कुल खान को दे दिया| इस प्रकार शाह्कुली खान यहाँ का जागीरदार बना| जिसने नारनौल मे जलमहल का निर्माण करवाया|अकबर के शासनकाल मे यहाँ राय बालमुकुन्द के छत्ते का निर्माण हुआ जिसे बीरबल का छत्ता के नाम से जाना जाता है| अकबर के ज़माने मे नारनौल मे सिक्के बनाने की टकसाल भी स्थापित की गई थी, जिसका कामकाज देखने के लिए राजा टोडरमल भी यहाँ आते-जाते थे|
औरंगजेब के शासन तक यहाँ अमन और शान्ति थी, किन्तु औरंगजेब के शासन मे यहाँ कि हिन्दू प्रजा पर मुस्लिम जागीरदारो ने ज्यादतियां करनी शुरु कर दी तो यहाँ के सतनामियो ने बगावत कर दी| शीघ्र ही यहाँ की जनता हिन्दू-मुस्लिम दो खेमो मे बंट गई और यहाँ के मुस्लिम फौजदार ताहिर बेग को विद्रोहियो ने मारकर नगर पर कब्जा कर लिया|
किसी लोक कवि का यह दोहा इसकि पुष्टि करता है-
सतनामी सत से लडे, ले हाथो मे तेग|
नारनौल के गौरवे, मारयो ताहिर बेग||
औरंगजेब कि मौत के बाद नारनौल पर जयपुर के राजपूतो ने कब्ज़ा कर लिया| लेकिन वह अधिक दिन नहीं रह सके | फ्रान्सीसी जनरल डे-बोएगेन ने उन्हे हरा दिया| कुछ ही समय मे एक बार फिर मुसलामानो का नारनौल पर आधिपत्य हो गया जब मुर्तजा खान बडैच यहाँ के जागीरदार बने| कालान्तर मे उनके वारिस अब्दुल रहमान का यहाँ नियंत्रण रहा| अब्दुल रहमान झज्जर के नवाब थे जिन्होने 1857 मे ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह मे भाग लिया था| प्रथम स्वतन्त्रता सन्ग्राम के बाद अंग्रेजो ने नारनौल पटियाला के राजा नरेन्द्र सिहं को दे दिया| नरेन्द्र सिहं ने इस युद्ध मे ब्रिटिश सेना की मदद की थी|
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