कोई बात नहीं थी बस यूँ ही
चल पडा था बाहर को यूँ ही,
हवा का झोंका था और ठंडी फ़व्वार,
बादलों का अँधेरा और इश्क का खुमार,
तेज थी बारिश तो रुका मैं रास्ते में,
वो भी बगल में खड़ी इंतज़ार कर रही थी,
मेरी नजर पड़ी तो हटी ही नहीं,
और वो बारिश रुकने की गुजारिश कर रही थी,
जाने ऐसी क्या जल्दी थी उसे जाने की
मैंने तो ठीक से देखा ही कहाँ था,
नाम पूछना? क्या काम करना? सब बाकी
अभी ये सब उसे पता ही कहाँ था,
बगल में बुजुर्ग देख मैं थोडा सकपकाया
लगा की जैसे उसका बाप होगा,
आज समय ठीक नहीं कल देखेंगे
कल दोपहर का खाना साथ ही होगा,
सोचा कल इसी समय इन्तजार करूंगा
वक़्त निकल गया पर वो ना दिखाई दी,
कई साल गुजरे एक रोज़ मुलाकात हो ही गयी,
वो किसी और बुजुर्ग संग बैठी दिखाई दी,
सपने टूटे हिम्मत भी टूट गयी,
मैं डरता रहा, उसकी शादी भी हो गयी,
उस बुजुर्ग ने काम खराब कर दिया था
गजब का प्यार किया वो धुंधली सी हो गयी |
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