जब मैं पिता बना

पिता बनना जीवन का सर्वोत्तम सुख है जिसे आप स्वयं ही महसूस कर सकते हैं। यूँ समझिये की आप की अपने समाज, अपने देश के प्रति जिम्मेदारी और बढ़ गयी है। और अब आप अपने ही बच्चों का मार्गदर्शन करेंगे। वो आपका ही प्रतिबिम्ब होंगे। ये वही एहसास है।



चाँद उतरा था जमीं पर कि अप्सरा उतर आई थी,

तारों की चादर ओढ़े हुए भाग्य चमकाने आई थी,


वक़्त भी ठहरा रहा उसके आने में,

और टीस बढ़ती रही हर फ़साने में,


पर बेबस माँ जब थककर चूर हुई,

तब उसकी कराह ही कमरे में मशहूर हुई,


मैं दौड़ा उचित परामर्श हेतु,

वो चिल्लाई बांध मन का सेतु,


आँखें झिलमिल हो चली सुन उसकी पुकार,

एक छोटी सी किलकारी से फूटी प्रेम फुहार,


वो अनुपम समय मैं भूल नहीं पाऊंगा,

जाने कैसे उस खुशी का ऋण चुकाऊंगा।




एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Popular Posts

आधुनिक मां
घर के बाहर आतंक
 गरीबी
विश्व वेदना
जब मैं पिता बना
गजब का प्यार