गरीबी





एक पहिया सा चलता है,
सूर्य की भांति ढलता है,
ऋतु  अवस्था का कोई प्रभाव नहीं,
जाने वक़्त कैसे गुजरता है,


विश्व में जगह बनायी और तीसरा स्थान पाया,
इतनी जनता में भी गरीबी के आंकड़े, कहाँ से उकेर लाया,
महंगाई के कदम का रुकने का कोई सल नहीं,
धेले की कमाई और धूल भर फुर्सत नहीं,


पुरुषों से अधिक महिला प्रभावित हुई हैं,
पुत्र के चक्कर में पुत्री ही वंचित रही हैं,
पैसे की कमी ने शिक्षा को गिरा दिया,
कुछ तो बेरोजगारी थी, कुछ सरकार ने हिला दिया,


संतुलित व पौष्टिक आहार की कमी हो गयी,
बीमारियां बढ़ने लगी और सफाई जाने कहाँ गयी,
दैनिक मजबूरियों ने बालश्रम को बढ़ावा दे दिया,
बेरोजगारी के रूप में गरीबी ने ही चढ़ावा दे दिया,


आवास की समस्या अब तक बनी हुई है,
आय के अंतर पर यूँ ही डटी हुई है,
कभी सड़क के किनारे,
तो कभी फुटपाथ के सहारे,
बीमारियों को बढ़ाती,
डॉक्टर के खर्च कहाँ से चुकाती,


भ्रष्टाचार, अशिक्षा ने आपस के भेदभाव को बढ़ा दिया,
देशद्रोही के स्वार्थ ने ही गरीबी को आंतरिक तड़का दिया,
गरीबी, अब समस्या नहीं श्राप बन गयी है,
वक़्त के पहिये के साथ बस चलती ही गयी है। 



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