शिक्षा सूचना को एकत्रित करने का सबसे सही व सरल साधन है, किन्तु फिर भी न तो जनता इसको समझना चाह रही है और न ही सरकार अपनी जिम्मेदारी को आंक रही है, बस अध्यापकों को मोटी तनख्वाह दे या तो चुनाव करवाती है या फिर लोगों के पहचान पात्र में त्रुटियों को ठीक करवाती है | गरीबी अपने चरम पर गरीबों को राशन की लाइन में खड़े किये हुए है और हम भारत में नालंदा विश्वविद्यालय ग्रंथों का उदाहरण लिए बैठे हैं | ये कविता ख़तम होने वाली नहीं है :
विद्या कोई साधन नहीं अपितु एक साधना है,विकासशील से विकशित की एक अवधारणा है |अपनी समस्या और जरूरतों को खुद ही संभालना होगा,शिक्षित समाज के हित में जनता को सजग बनना होगा |हम खुद चुनौती हैं सरकार की नियमों को क्या दें दोष,पढने से ज्यादा चिंता रोजगार की किसके सम्मुख रखें रोष |नेताओं ने निजी स्कूल खोल सरकारी का भट्टा बिठा दिया,मुफ्त की मोटी तनख्वाह में जनता का पहचान पत्र बना दिया |शिक्षक जहां सिर्फ वोट दिलाने और राजनीती करने आते हैं,बच्चों के भविष्य की छोडो अपने परपंच जमाने आते हैं |बच्चे बस गरीबी के मारे स्कूलों में दीखते हैं,बच्चों से ज्यादा तो शिक्षक के साधन मिलते हैं |क्या हाल बना दिया सरकारी स्कूलों का सरकार नें,भर पेट भोजन खातिर बच्चे मिलते बस क्लास में |हर एक गाँव में कम से कम दस निजी बसें आती हैं,भरे पूरे गाँव से गरीबों को छोड़ सब भर ले जाती हैं |पहले शिक्षित अध्यापक मूल जरूरत थी विद्यालयों की,अब बच्चों बिना सूना सूना लगता है विद्यालय भी |भले ही सरकारी आंकड़े कुच्छ भी तरक्की दिखाएं विद्यालयों में,पर असली सूरत जाकर देखो क्यों कम हैं बच्चे विद्यालयों में |
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