बस यूँ ही पिस्ता रहा हूँ,
ख्वाब ह्रदय में सजाता रहा हूँ,
अधिकारों की मांग की खातिर,
सरकार के आगे टिकता रहा हूँ,
हाँ मैं क्रांतिकारी हूँ।
हाँ मैं क्रांतिकारी हूँ।
बनिए ने भाव बढ़ाकर,
आटा दाल महँगा कर दिया है,
बेरोजगारी का तमाचा खाकर,
महंगाई को एक सिरे धर दिया है,
फिर उठा, खड़ा होकर चला,
हर हिस्से के लिए जूझता रहा हूँ,
हाँ मैं क्रांतिकारी हूँ।
जन की हिम्मत भूल गयी सरकार,
अब क्या सम्मान दिलाएगी?
सस्ते भाव खरीदकर अनाज,
महंगे भाव उन्हें ही खिलाएगी,
समय का तराज़ू हाथ में लिए,
किस्मत से लड़ता रहा हूँ,
हाँ मैं क्रांतिकारी हूँ।
धर्म व्यथा सब व्यर्थ है,
कर्म की पूजा कौन करेगा?
क्या सही हुआ? क्या गलत हुआ?
इसका फैसला कौन करेगा?
ये हरदम बस चलता न रहे,
मैं इसी बात से डरता रहा हूँ,
हाँ मैं क्रांतिकारी हूँ।
सपने सारे लूट रहे वो,
फरेब की आंधी में दीप जलाकर,
फिर से गुलामी की जंजीरें बाँध जाएंगे,
वे अपना ही हक जताकर,
इस देश की आत्मा बनकर
मैं हर बार सँभलने को कहता रहा हूँ,
हाँ मैं क्रांतिकारी हूँ।
देशद्रोही व दुश्मनो के जनाज़े को,
सरेआम गली गली घुमाएंगे,
नशा देश भक्ति का हुआ मुझे,
हर किसी के रगों में चढ़ाएंगे,
मैं बार बार मिट भी जाता हूँ पर
पुनः मशाल बन जलता रहा हूँ,
हाँ मैं क्रांतिकारी हूँ।
हाँ मैं क्रांतिकारी हूँ।
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