यही लोकतंत्र रह गया बस


लोकतंत्र दो शब्दों से मिलकर बना है, लोक यानी जनता और तंत्र यानी शासन, मतलब "जनता का शासन"। पर अब लोकतंत्र कहाँ रह गया है।  अब तो ये बन गया है "जातितंत्र" । हम सब छोटी छोटी जातियों में बटने लगे हैं।


 
गौपूजा, गौटैक्स और मंदिर का निर्माण,
जातिगत सहायता व जातिगत आरक्षण का मान,
फूट डालो राज करो, जाति हो गई श्रेष्ठतम धाम,
एक धर्म, एक जाति का कब्जा, बना बस्ती का नाम,

पिछड़े व दलितों को उच्च बस्ती में जगह कहाँ मिलती है,
धर्म, जाति का भेदभाव बढ़ाकर, पुरानी रीत ही चलती है,
गर कोई उच्च जाति की बस्ती में प्रवेश कर जाता है,
नीची जाति के कारण, सम्मान कहाँ मिल पाता है,

दुनिया के नक़्शे में लकीरें, यूँ ही नहीं आ जाती हैं,
जाति धर्म को बीच में रखकर, निर्दयता से खींची जाती हैं,
जर्मन आर्य सर्वश्रेष्ठ हैं ये हिटलर ने जताया है,
जापानियों ने क्रूरता से अपना लोहा मनवाया है,

लोग तो कमजोरों का साथ भी पसंद नहीं करते हैं,
भीड़भाड़ में कमजोर, एकांतवास का जीवन जीते हैं,
औरतों के कामकाज से भी जीवन बदल गया है,
पड़ोस में कौन जन रहता है, ये सब व्यर्थ हो गया है,

घर घर में विभाजन की मनसा पनप रही है,
कुटुंब टूटता जा रहा ये सोच भी नहीं रही है,
विवाहप्रेम प्रतिज्ञा भी समझौते पर टिक रही है,
एक वर्ग की दुसरे वर्ग से ही ईर्ष्या हो रही है,

अलग तरह के लोग जब आपस में बैठते हैं,
अपने ही विचारों को दूसरों के अनुसार बदलते हैं,
लोगों से परिवार बने हैं, परिवारों से बना है देश,
"हम एक हैं" कि भावना टूटी, रखे सबने नकली भेष,

अब तो जातिगत समाज हो गया है,
एकजुट होकर रहना, सपना रह गया है,
बस यही लोकतंत्र रह गया !





एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Popular Posts

आधुनिक मां
घर के बाहर आतंक
 गरीबी
विश्व वेदना
जब मैं पिता बना
गजब का प्यार